गुरुवार, 23 मई 2019

रुको, रुको, रुको...इक नया पैमाना आया है...

विश्वत सेन
आज यानी 23 मई 2019 को 17वीं लोकसभा के लिए हुए चुनाव का समापन हो गया। एक्जिट पोल सर्वे और भाजपा व एनडीए के सहयोगी दलों के मुताबिक भाजपा और उसके सहयोगी दलों को 2014 के आम चुनाव की तुलना से कहीं अधिक प्रचंड बहमत मिला है, मगर रुको, रुको, रुको....। मतगणना शुरु होने के बाद से लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संबोधन तक के दरम्यान मुझे एक नया पैमाना मिला है।
अब आप पूछेंगे कि भई, वह नया पैमाना आखिर है क्या?
मेरा उत्तर होगा कि आप जरा 2009 से लेकर 2014 तक यूपीए-दो के शासनकाल में गरीबी का पैमाना तय करने वाली दरों पर गौर करें। 2014 के पहले तक देश में योजना आयोग नाम की एक संस्था थी, जिसका पदेन अध्यक्ष देश का प्रधानमंत्री होता था। 2014 में मोदी सरकार आयी, तो योजना आयोग भंग हो गया और उसकी जगह पर नीति आयोग हो गया, जिसका पदेन अध्यक्ष अब भी प्रधानमंत्री ही होता है। यूपीए-दो के योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया थे, जो देश में व्याप्त गरीबी का पैमाना शहर और गांव में एक दिन में एक परिवार के एक व्यक्ति के भोजन पर खर्च होने वाली रकम के आधार पर तय करवाते थे। इन पैमानाकारों में अहलूवालिया के अलावा तत्कालिन ज्ञान आयोग के अध्यक्ष और वर्तमान में अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष सैम पित्रोदा, एक-दो दक्षिण भारतीय अर्थशास्त्री और समाजवादी पार्टी छोड़कर कांग्रेस में आये नये-नवेले राजनेता बनाम अभिनेता राज बब्बर हुआ करते थे।
खैर, जबसे देश में श्रीमान नरेंद्र दामोदर भाई मोदी का शासन आया, तो कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दल मटियामेट होने लगे। 23 मई, 2019 को 17वीं लोकसभा के लिए हुए चुनाव की मतगणना का दिन था, जिसमें भाजपा समेत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को प्रचंड बहुमत मिला। इस प्रचंड बहुमत के लिए पीएम मोदी, उनकी आईटी सेल और खासकर भारत के निर्वाचन आयोग को बहुत-बहुत बधाई।
दोबारा प्रचंड बहुमत मिलने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जीत की बधाई अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं को देने के लिए नयी दिल्ली स्थित भाजपा मुख्यालय में पहुंचे और उन्होंने जो भाषण दिया, उसमें से एक बात मेरे दिमाग में क्लिक कर गयी और वह यह कि उन्होंने कहा कि "अब इस देश में कोई जाति नहीं है। बस, दो ही जाति है। एक गरीब और दूसरी वह जो गरीबों के विकास में अपना सहयोग देती है।"
मित्रों, यही वह नया पैमाना है। सदियों से इस देश में ही नहीं पूरी दुनिया में आर्थिक मजबूती का मूल्यांकन "अमीरी और गरीबी" से किया जाता है या किया जाता रहा है। पीएम मोदी की इस अवधारणा ने गरीबों के पैमाने या हैसियत की लकीर खींच तो दी, लेकिन इसने अमीरों की हैवानियत, लूट, मुनाफाखोरी, क्रोनी कैपिटलिज्म, विजय माल्या, नीरव मोदी, ललित मोदी, मेहुल चौकसी, अडानी, अंबानी जैसे धनाढ्यों की करतूतों पर पर्दा डाल दिया। उनका यह बयान इस ओर साफ इशारा करता है कि मोदी ने अमीरों या यूं कहें कि बड़े कारपोरेट घरानों के बूते 2014 में जिस सत्ता को हासिल किये थे, 2024 तक उन्हीं देश के बड़े कारपोरेट घरानों के लिए काम करते रहेंगे और उनकी हर गलती को क्लीनचिट देते रहेंगे; तो यह अतिशयोक्ति नहीं होगी। अनेकता में एकता और बहुजाति प्रथा वाले देश में यदि केवल दो ही जाति (एक गरीब और दूसरी गरीबों के उत्थान में सहयोग करने वाली) को परिभाषित किया जा रहा हो, तो यह चिंता का विषय जरूर है।

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