शुक्रवार, 14 जून 2019

कौआ आज भी प्यासा है...

फोटो साभार : शटर स्टॉक.कॉम

विश्वत सेन

बुद्धिजीवी वह होता है, जिसकी बुद्धि जीवित हो। जिसे समाज के दर्द से दर्द हो और जो मर्दों में मर्द हो...
बाक़ी सब तो लाश हैं, पोस्टमार्टम हाउस की तलाश हैं...
चिल्लाने के लिए तो स्त्रियां भी चिल्लाती हैं...
हिजड़े, विधुर, विधवा, पति परित्यक्ता, पत्नी परित्यक्त, अरीपार, तड़ीपार आदि में वह दम कहां, जो चिंघाड़ सके...
चिंघाड़ते तो शेर हैं जंगलों में...
जिनकी पत्नी शेरनियों को ह्यूम पाइप में ले जाकर स्वानदत्त सहवास तक कर डालते हैं...
तलाश तो रामराज की थी, मगर ससुरा दुःशासनी राज आ गया...
अन्न का दोष है...
अन्न के दोष से भीष्म पितामह न्याय और अन्याय तथा पाप और पुण्य का फर्क नहीं कर पाये...
विदुर और विभीषण हर जाति, धर्म और समाज में होते हैं...
ताड़का, सूर्पनखा और सुरसा का जो फर्क जान न सका, समस्या का समाधान हनुमान जी लेकर आ गये....
मृत संजीवनी सुरा जब एक अंग्रेजी शराब के क्वाटर के बराबर नशा कर सकती है, तो अर्जुनारिष्ट और अशोकारिष्ट की दो-दो ठेपी तीन बार औरतें क्यों पीती हैं, यह छुपा है क्या....???
नशा तो नशा है साहिब, मगर कोई 495 हारकर भी नशे में है और कोई तीन सौ का झूठा आंकड़ा पार करने के बाद...
भारत दुनिया का सबसे बड़ा बाजार है और बाजार में जो दिखता है, वही बिकता है साहिब...
चाहे मिड टर्म अप्रेजल हो, सालाना अप्रेजल हो या फिर सैलरी करेक्शन हो...
काली मैया झखुरा पसार के रेवड़ी अपने अपनो को ही देगी...
तेल चाटने वाले कीड़े को तेलचट्टा कहते हैं और पत्तल उठाकर चाटकर फेंकने वाले को पत्तलचट्टकरफेंकवा कहते हैं...
गिरीश कर्नाड होने के लिए कलेजा में दम चाहिए...
हिम्मत और कलम चाहिए...
कलम तो मौत का फरमान लिखने वाले भी चलाते हैं और नरपिशाचों को बाइज्जत बरी करने वाले भी चलाते हैं...
कौआ आज भी प्यासा है...
वालमार्ट की जग गई आशा है...
अंबा, अंबानिके, अडानिके ही के राज हैं...
कंक्रीटों के जंगल में व्याप्त जंगलराज है...
कंक्रीटों के जंगल में व्याप्त जंगलराज है...

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