बुधवार, 30 मई 2012

पेट का बच्चा बोल रहा है

पेट का बच्चा बोल रहा है,
इधर-उधर वह डोल रहा है।
रस रसायन घोल रहा है,
अंदर से ही तौल रहा है।
लोथड़ा मांस का टटोल रहा है,
भेद राज का खोल रहा है।
पेट का बच्चा बोल रहा है,
इधर-उधर वह डोल रहा है।।

नस-नाड़ी से है अलंकृत,
मातृ स्वास से होता है झंकृत।
रक्त रस से होता है सिंचित,
मॉं के मिजाज से होता है पुलकित।
मॉं के हिय से बोल रहा है,
उछल-कूदकर डोल रहा है।।

नाभि से दोनों का रिश्ता,
मॉं का प्यार मिलता है सस्ता।
पेट में करता है जब क्रीडा,
मॉं को होती है सुखद एक पीड़ा।
अंतर्मन से दोनों बतियाते,
एक-दूजे को खूब धकियाते।
लात से देता अंतर चोट,
बाहर मॉं हंसती लोटपोट।
प्यार से देती है एक थपकी,
शांत होते ही लेती एक झपकी।
ज्ञान चक्षु वह खोल रहा है,
उदक-फुदककर डोल रहा है।।

मॉं के मन को लेता है भांप,
खुश मिजाज या हो संताप।
या कोई पाप करे फिर बाप,
ठंड मौसम हो या फिर ताप।
अभी था अर्द्धवृत्त, अभी गोल हुआ है,
गोलाकार वह डोल रहा है।।

पेट में रह जाती जब जोई,
सुध नहीं लेता उसकी कोई।
नहीं होती फिर मासिक जांच,
उदर में पड़ती रहती आंच।
समग्र समाज की सोच है संकुचित,
बाप ही करा रहा भ्रूण को विकृत।
अप्रसून तन का मोल हुआ है,
गंदे नाले का घोल हुआ है।
चीख-चीख वह बोल रहा है,
छपर-छपर कर डोल रहा है।।

यदि पेट में रहता है ललना,
पहले ही घर में आ जाता पलना।
ऑंगन में बजती शहनाई,
देखभाल करते देवर-भौजाई।
पास-ससुर भी करते ठिठोली,
सबकी निकलती तब ऊंची बोली।
जमीन पर नहीं पड़ता फिर पांव,
भोज में जिमते गांव पर गांव।
धन-दौलत अभी नहीं है प्यारा,
घर में आ गया राज दुलारा।
वह देह की चमड़ी छोल रहा है,
इधर-उधर वह डोल रहा है।।

उछल-उछल कर डोल रहा है,
पेट का बच्चा बोल रहा है।
नहीं चाहिए हमें चॉंद सितारे,
बहना लाकर दे दो प्यारे।
लाकर दे दो मेरी जननी,
और करा दो मेरी मंगनी।
तूने पूरी सृष्टि को है उजाड़ा,
प्यारी बहना को तूने मारा।
तुमने किया है जघन्य पाप,
मैं नहीं दूंगा तुम्हें कोई श्राप।
बस यही एक सत्कर्म करूंगा,
तेरी देह पर न हाथ धरूंगा।
जीवन में जहर तू घोल चुका है,
यह पेट का बच्चा बोल रहा है।।

तेरे मन में थी अभिलाषा,
पहले से थी बेटे की आशा।
तेरा वारिस नहीं बनूंगा,
उल्टे सारे काम करूंगा।
खुद खोज लेना संसार,
नहीं चाहिए मुझे तेरा प्यार।
नहीं चाहिए अर्श और कल्प,
अब लेता हूं एक संकल्प।
तुझ पर नहीं दृष्टि रखूंगा,
तुझसे अच्छा एक सृष्टि रचूंगा।
मानव पुत्र यह बोल रहा है,
पोल खोलकर डोल रहा है।।

विश्वत सेन
मई 31, 2012

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