सोमवार, 2 जनवरी 2012

...और कितने ‘स्लट वॉक’

विश्वत सेन

दुनिया में होने वाली महिला यौन उत्पीड़न, छेड़छाड़ और दुष्कर्म की वारदात के पीछे महिलाओं के पहनावे को अहम वजह माना जा रहा है। समय-समय पर महिलाओं को परिधानों के चयन को लेकर सलाह भी दी जाती है, मगर महिला संगठनों और स्वच्छंद विचारों वाली महिलाओं को यह सलाह पसंद नहीं आती। उन्हें यह सलाह उनकी आजादी पर हमला लगता है और वे देश-दुनिया के समाज को पितृ सत्तात्मक बताकर स•य तरीके से गालियां देने लगती हैं। महिलाओं को बदन ढकाऊ कपड़े पहनने की सलाह देने पर पूरी दुनिया में ‘स्लट वॉक’ किया गया था। अब आंध्र प्रदेश में महिलाओं के पहनावे को लेकर चर्चा जारों पर है। यह चर्चा महिलाओं और खासकर युवतियों के पहनावे पर केंद्रित है। कहा यह जा रहा है कि महिलाओं के पहनावे और उनके परिधान ही पुरुषों को नैतिक पतन की ओर से धकेल रहे हैं। इसके पीछे तर्क यह दिया जा रहा है कि महिलाएं और युवतियां खुद को ‘बोल्ड’ साबित करने के फिराक में अंग प्रदर्शक पारदर्शी परिधानों का चयन करती हैं। यह कपड़े पुरुषों को उत्तेजक और नैतिक पतन की ओर धकेलते हैं। इसलिए महिलाओं को इस प्रकार के पहनावे से परहेज ही करना चाहिए। हालांकि इस नई बहस में यह  भी  कहा जा रहा है कि हमारे देश में विभिन्न सभ्यता और संस्कृति की महिलाएं निवास करती हैं। हर संस्कृतियों के परिधान भी अलग-अलग हैं। कहीं साड़ी पहनी जाती है, तो कहीं घाघरा-चोली पहनी जाती है, मगर परिधानों की यह पारंपरिक वि•िान्नता अंग प्रदर्शन में सहायक नहीं बनती। इसके विपरीत आधुनिक फैशन की लो वेस्ट जींस जैसे अंग प्रदर्शक और पारदर्शी परिधान नैतिकता को तार-तार करते हैं।
आंध्र प्रदेश के महिला एवं बाल कल्याण मंत्री सीसी पाटिल और राज्य के डीजीपी दिनेश रेड्डी ने मोरल पुलिसिंग के बहाने महिलाओं के पहनावे पर हमला करके एक नई बहस छेड़ दी है। इसके साथ ही उन्होंने अतिवादी महिला संगठनों और स्वच्छंद विचारों वाली लड़कियों और महिलाओं को उकसाने का काम किया है। आंध्र के इन दोनों जिम्मेदार लोगों के बयान के बाद एक बड़ा सवाल यह पैदा हो गया है कि क्या अब दिल्ली और देश की अतिवादी महिला संगठन और स्वच्छंद विचारों वाली महिलाएं उनके बयानों के विरोध में देसी ‘स्लट वॉक’ करेंगी?
हालांकि इससे पहले अपने पहनावे और यौन उत्पीड़न, दुष्कर्म आदि की घटनाओं के विरोध में प्रबुद्ध वर्ग की महिलाओं ने वर्ष 2011 की 31 जुलाई को दिल्ली के जंतर-मंतर पर ‘स्लट वॉक’ किया था। उस समय  भी पूरे देश में एक लंबी बहस छिड़ी थी। सही मायने में यह ‘स्लट वॉक’ कनाडा पुलिस के हेड कांस्टेबल ‘माइकल सैंग्यूनेटी’ के बयान के विरोधस्वरूप था, जिसमें उन्होंने जनवरी 2011 में ‘महिलाओं को शारीरिक शोषण से बचने के लिए स्लट्स (वेश्याओं) की भांति फूहड़ कपड़े नहीं पहनने’ की सलाह दी थी। 
अब आंध्र प्रदेश पुलिस और वहां की सरकार ने महिलाओं के परिधान पहनावे पर बयान देकर एक नई बहस छेड़ दिया है। पुलिस के जिम्मेदार अधिकारी प्रदेश के डीआईजी दिनेश रेड्डी ने महिलाओं द्वारा पहने जा रहे आधुनिक फैशनेबल और पारदर्शी परिधानों के पहनावे से दुष्कर्म, यौन उत्पीड़न और छेड़छाड़ जैसी वारदात के होने का कारण बताया है। उनके बाद राज्य के महिला एवं बाल कल्याण मंत्री ने  भी उनकी फिल्डिंग करते हुए मोर्चा सम्भाल लिया है। 
आंध्र के बाल कल्याण मंत्री पाटिल ने पहनावे को लेकर तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा है- ‘महिलाओं को यह पता होना चाहिए कि उन्हें अपने शरीर के किस अंग को छिपाकर रखना और किसे नहीं। उनका कहना है कि वह खुद निजी तौर पर उत्तेजक और पारदर्शी कपड़े पहनने की मुखालफत करती हैं। उन्होंने कहा है कि महिलाएं जो कुछ  भी पहनें, वह गरिमापूर्ण हो। 
इससे पहले आंध्र के डीजीपी दिनेश रेड्डी ने  भी महिलाओं के पहनावों पर बयान दिए थे। उनके बयान पर अनेक सवाल खड़े किए गए। डीजीपी रेड्डी ने कहा था कि महिलाओं के फैशनेबल और पारदर्शी कपड़े पहनने से रेप की घटनाएं बढ़ती हैं। रेड्डी के बयान पर किए गए सवालों के बचाव में महिला एवं बाल कल्याण मंत्री पाटिल का कहना है कि दुष्कर्म और यौन उत्पीड़न तब होते हैं, जब पुरु षों की नैतिकता गिरती है। पुरु षों की नैतिकता उस समय गिरती है, जब महिलाएं भड़काऊ कपड़े पहनती हैं। 
मंत्री पाटिल कहती हैं कि आजकल का लाइफस्टाइल ऐसा हो गया है कि महिलाओं को पुरु षों की तरह काम करना ही होता है। इसलिए महिलाएं रात को आईटी कंपनियों और कॉल सेंटर्स में काम करती हैं। महिलाओं को यह पता होना चाहिए कि इन जगहों पर काम करने के लिए जब वे घर से निकलती हैं, तो उन्हें अपने शरीर को कितना ढंककर रखना है। इसलिए महिलाओं को ही कपड़ों के चयन और पहनावा तय करना होगा। 
पाटिल ने स्पष्ट रूप से महिलाओं के ड्रेस कोड की वकालत तो नहीं की, लेकिन इतना जरूर कहा कि उन्हें बाजार में धड़ल्ले से बिकने वाली लो वेस्ट जींस नहीं पहननी चाहिए। उन्होंने कहा कि देश में अलग-अलग सभ्यता और संस्कृति की महिलाएं निवास करती हैं। कहीं पर घाघरा-चुन्नी पहनी जाती है, तो कहीं पर साड़ी। वैसे बाजार में लो-वेस्ट जींस  भी आराम से मिल जाती हैं, मगर यह महिलाओं पर निर्भर करता है कि वह खुद को सुरक्षित रखने के लिए कौन-से कपड़े का चयन करती हैं। पारंपरिक वस्त्र महिलाओं के शरीर को ढंककर रखते हैं, तो फैशनेबल जींस उनके अंगों को प्रदर्शित करती है।
आंध्र प्रदेश के इन दो जिम्मेदार लोगों के बयानों के पहले  भी देश में महिलाओं के परिधान को लेकर कई सवाल खड़े किए जाते रहे हैं। कहा जाता है कि कथित तौर पर आर्थिक शक्ति बन चुके इस देश में महिलाओं का योगदान कितना अधिक है, लेकिन फिर  भी आज महिलाओं को सड़क पर बेखौफ चलने की आजादी नहीं है। वह किसी  भी वक्त गंदी फब्तियों, छींटाकशी और रेप की शिकार हो सकती है। कहने को तो महिलाएं आजाद हैं, लेकिन क्या वाकई आजाद हैं?
महिला आजादी और नए फैशनेबल परिधानों की पक्षधर पूजा प्रसाद कहती हैं कि स्लटवॉक के विरोधी स्त्री-पुरु ष कहते हैं सुरैया और मीना कुमारी जैसी सफल और खूबसूरत अदाकारा तन ढंक कर रखती थीं। जो लोग यह कहते हैं वह यह भूल जाते हैं कि इन आदाकाराओं को  भी तब के समाज का विरोध झेलना पड़ा था। कहा गया था कि कैमरे के सामने आएंगी, तो उनकी और उनके परिवार की इज्जत लुट जाएगी। तब के समय में किसी महिला का फिल्म इंडस्ट्री या फिल्म गायन के क्षेत्र में उतरना उतना ही बोल्ड कदम था, जितना कि आज के समय में किसी मिडिल क्लास लड़की का मॉडलिंग के क्षेत्र में आना और बिकीनी फोटोशूट करना।
दरअसल, कनाडा के हेड कांस्टेबल माइकल और आंध्र के डीजीपी दिनेश रेड्डी के बयानों में बहुत हद तक समानता  भी है। फर्क सिर्फ इतना है कि कनाडा के पुलिस अफसर माइकल के कहने का तरीका थोड़ा असहज था, मगर भावार्थ दोनों अफसरों का लगभग एक समान है। इसीलिए यह सवाल  भी पैदा हो रहा है कि कनाडा के एक पुलिस अफसर के बयान पर जब पूरी दुनिया में बवाल खड़ा किया जा सकता है और संसार के पितृ सत्तात्मक समाज को कोसा जा सकता है, तो फिर आंध्र प्रदेश के पुलिस अफसर के बयान पर  भी उफान आ सकता है। जुलाई 2011 की भारत की अतिवादी और स्वच्छंद विचारों वाली महिलाएं और युवतियां आज  भी इस देश में हैं। यदि वह कनाडा में दिए गए बयान पर दिल्ली में स्लट वॉक कर सकती हैं, तब आंध्र प्रदेश तो अपने देश का ही राज्य है। उन्हें यहां के पुलिस अफसर के बयान पर  भी अतिवादी होना चाहिए और यदि वह ऐसा नहीं करती हैं, तो इसमें कोई दो राय नहीं कि भारत की महिलाएं सचमुच पश्चिमी देशों की महिलाओं की सिर्फ नकलभर करती हैं। वह इसलिए कि यदि एक बयान से उनकी अस्मिता और आजादी पर हमला हो सकता है, तो दूसरे बयान  भी उनके दिलों में टीस पैदा कर सकते हैं। 

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