बुधवार, 16 मई 2012

रात खटमली

रात खटमली टूटी खाट है,
टूटी खाट की अलग बात है।

स्याह रात में घुप्प अन्धेरा,
खटमलों ने बांधा है घेरा,
टूटी खाट में डाला है डेरा,
बेसब्री से इन्जार है मेरा,
लंबा नहीं कोई उनका बाट है,
उनके जीवन में खूब ठाट है।
रात खटमली टूटी खाट है,
टूटी खाट की अलग बात है।।

खटमल मच्छर में है बड़ा भेद,
खटमल करता है निःशब्द आखेट,
मच्छर करता है पहले वंदन,
पैर पकड़ करता अभिनन्दन,
मधुर-मधुर है गीत सुनाता,
सोते मानुष को पहले जगाता,
सूचना देकर करता है वार,
संभल जाओ करता हूँ प्रहार,
मसहरी लगाकर ढंक लो खाट,
नहीं तो लेंगे हम तुम्हें काट,
रात मच्छरीली टूटी खाट है,
टूटी खाट की अलग बात है।।

दोनों को है रक्त पिपासा,
तनिक नहीं जीवन की आशा,
रुधिर ही है उनका आहार,
मजबूरी में वह करते प्रहार,
जन जानवर हैं दोनों एक,
कभी न करते हैं वह भेद,
जिनका नहीं है लहू से नाता,
चलाते हैं वह भाला-गंडासा,
झट से सिर को काट देते हैं,
नहीं किसी का बाट जाहते हैं,
लहू लसित वह टूटी खाट है,
टूटी खाट की अलग बात है।।

रक्त पिपासु हैं दोनों जीव,
मानुष मन से व्यथित अतीव,
मानव बंधू को काट रहा है,
निज बंधू लहू को चाट रहा है,
उनसे कहीं हम ही अच्छे हैं,
बंधू तो बंधू बच्चे भी सच्चे हैं,
करना होता है यदि हमें आखेट,
पहले करते मनुजों को सचेत,
तब कहीं जाकर खाते हैं काट,
घर बनाते हैं वही टूटी खाट,
पर मनुज मांगता है ठाट-बाट,
न रात खटमली, न टूटी खाट,
रात खटमली टूटी खाट है,
टूटी खाट की अलग बात है।।

खटमलों की है अजब प्रवृत्ति,
नहीं होती कभी चित्त की वृत्ति,
चित औ' चित्त पर करते घात,
प्रतिघात की नहीं सोचते बात,
कोमल तन को बहुत सताते,
डंक मार झट से छुप जाते,
नहीं देखते बूढ़े और बच्चे,
रक्त पीते हैं गर्म और कच्चे,
फिर भी नहीं भरता है पेट,
देह को बना देते वह खेत,
पस्त हो जाते पड़ते हाथ,
नहीं देता कोई उनका साथ,
अंगुली मलमली, टूटी खाट है,
टूटी खाट की अलग बात है।।

परजीवी, पर शोषक होते,
पूरे दिन साँधी में सोते,
सम भाव है उनमें समाया,
नहीं कभी जीवन में कमाया,
सबको एक समान सताया,
बेटा बहू या हो फिर जाया,
हरपल वंशावली बढ़ाया,
चमड़ी का है खेल रचाया,
लकड़ी चमड़ी का है खेल,
कच्ची चमड़ी से होता मेल,
छिद्राछिद्र पर करते वार,
डंक मारते हैं बारम्बार,
अंक डंक पर पडा हाथ है,
अस्त वस्त्र और खुला माथ है,
रात ढल चली, टूटी खाट है,
टूटी खाट की अलग बात है।।

हे मानव, तू मसक से सीख,
खटमल से तू मांग ले भीख,
कभी बांधव नहीं करते हलाल,
आखेट से पहले ठोंकते ताल,
नहीं तोड़ते प्रकृति का नियम,
मन पर रखते हैं वह संयम,
रात का वह करते इंतज़ार,
दिन में कदाचित करते प्रहार,
क्यों लगाईं फिर दिन में हाट
जहां बेच रहे हो टूटी खाट,
मची खलबली, टूटी खाट है,
टूटी खाट की अलग बात है।।

-विश्वत सेन
मई पांच, 2012

कोई टिप्पणी नहीं: