सोमवार, 29 जनवरी 2018

विरासत के झरोखे से-(भाग-एक)

विश्वत सेन
हमारे बाबूजी बचपन में बताते थे, "मकदुनिया का शासक सिकंदर (जिसे सिकंदर महान भी कहा जाता है।) जब दुनिया को जीतने के अभियान के दौरान भारत पर आक्रमण करने की तैयारी में था, तब उसने अपने राजनीतिक गुरु अरस्तू (384 ईपू-322 ईपू) से पूछा था-"गुरुजी मैं भारत जा रहा हूं, वहां से आपके लिए क्या लाऊंगा।" इस पर अरस्तू ने जवाब दिया था-"भारत जा रहे हो, तो हमारे लिए क्या लाओगे?"
सिकंदर-"जो आप कहेंगे।"
पहले तो अरस्तू अपनी इच्छा जताने में दिलचस्पी नहीं दिखाए, मगर सिकंदर ने जिद किया, तो उन्होंने कहा-" अव्वल यह कि तुम भारत विजय की मंशा त्याग दो। दूसरा यह कि अगर तुम भारत जा ही रहे हो और जिंदा वापस आ जाओ, तो वहां के संत पुरुषों (गेरुआ धारण करने मात्र से कोई संत नहीं हो जाता।) से मुलाकात करते आना और अगर हो सके, तो कौटिल्य (375 ईपू-283 ईपू) से मिलते आना।"
सिकंदर भारत आया, आक्रमण किया; मगर न तो उसकी मुलाकात संतों से हो सकी और न कौटिल्य से। वजह ये थी कि वह मगध तक आधिपत्य जमाने के पहले पंजाब में ही युद्ध के दौरान गंभीर रूप से घायल हो गया। घायलावस्था में ही वह वापस लौटने लगा, लेकिन उसकी रास्ते में ही मौत हो गयी।"
बाबूजी यह बात हम लोगों को आज से कम से कम तीन दशक पहले बताते थे। आज जब बाबूजी की यह बात जेहन में आयी कि ईसा पूर्व चौथी शताब्दी में आज की तरह संचार और सूचना के इतने सारे तीव्रगामी साधन नहीं थे और कौटिल्य या फिर अरस्तू अपने देश से बाहर नहीं निकले, क्योंकि तब आज के बड़े और बुद्धजीवी लोगों की तरह घुटनों में उड़न खटोले का पंख भी बंधा नहीं होता था; बावजूद इसके सात समद पार का एक बुद्धजीवी सात समद पार के दूसरे बुद्धजीवी को इतने करीब से जानता था? 
दूसरा आवागमन के आज की तरह द्रुतगामी साधन न होने के बावजूद करोबार और उन्नत कारोबार होता था। भारत के लोगों ने कभी भी अपने यहां निवेश के लिए किसी दूसरे राष्ट्र को आमंत्रित करने नहीं जाते थे, फिर भी भारत सोने की चिड़िया था।
आज आवागमन के द्रुतगामी साधन हैं, संचार और सूचना के मुफ्त तीव्रगामी साधन उपलब्ध हैं और बुद्धजीवी लोगों का भंडार है, बावजूद इसके देश में अमन नहीं है, विकास की बात की जाती है, मगर पेट पर आफत है। देश का मुखिया निवेश के लिए दुनिया भर के देश से गिड़गिड़ा रहा है, विदेश जाता है, पर मारीशस ही साथ देता है।

जारी.....