गुरुवार, 9 अगस्त 2012

कारवां गुजरने पर जागती है पुलिस

विश्वत सेन
दिल्ली पुलिस के कप्तान साहा शहर में मातहतों की कारगुजारी अपनी आंखों से देखने के लिए औचक निरीक्षण पर निकले थे। अकेले बिना किसी लाव-लश्कर के। ज्यादातर थानेदारों, चौकीदारों और बीट कांस्तेबलों को इसका पता ही नहीं था। कप्तान साहा अपने रौ में निकलते जा रहे थे, देखते जा रहे थे और बगल की सीट पर बैठे एक व्यक्ति को नोट कराते जा रहे थे। उनके मातहतों को उनके दौरे के बारे में तब पता चलता, जब कप्तान साहब किलो-दो किलोमीटर का सफर तय कर लेते। फिर ‘सांप का बिल में जाने के बाद डंडा पीटने’ जैसा हकरत करते हुए थानेदार, चौकीदार और बीट कांस्टोल सरपट भागने वाली सरकारी गाड़ी पर पीछा करने जैसी दौड़ लगाते। जब तक वह पीछे से पहुंचकर कप्तान साहब को सलामी ठोकते, तब तक कप्तान साहब उनके इलाके से बाहर। पीछे से बेचारे उनकी कार की लालबत्ती को ही सलामी देकर संतोष कर लेते।
मंगलवार की रात आजादपुर इलाके में कुछ ऐसा ही वाकया देखने को मिला। कप्तान साहा रात्रि भ्रमण कर रहे थे। बिलकुल तनहा, बिना किसी लाव-लश्कर के। हम आजादपुर मंडी के गेट पर किसी वाहन के इंतजार में खड़े थे। मेरे पीछे चौकी और बीट और करीब दो फर्लांग की दूरी पर आदर्श नगर थाना। कप्तान साहब अपनी रौ में हमारे सामने से गुजर गए। हमारी उन पर नजर पड़ी, मगर उनके मातहत काम करने वालों को उसकी खार नहीं थी। बीट कांस्टोल गाड़ी गुजरने के बाद पीछे से लालबत्ती को सलामी ठोकता नजर आया, तो चौकीदार साहब पांच मिनट बाद पीछे-पीछे बाद। उनके पांच मिनट बाद थानेदार साहब की भी गाड़ी भागी, मगर दुर्भाग्य यह कि जब तक ये तीनों अफसर कप्तान साहब तक पहुंचते, तब तक वे इलाके से निकलकर दूसरे क्षेत्र में पहुंच चुके थे।
कप्तान साहब को नजर आया और खूब अच्छी तरह से नजर आया, उनके ही विभाग में तैनात कर्मचारियों की मुश्तैदी। उन्हें यह भी नजर आया कि जिनके भरोसे वह दिल्ली को अपराधमुक्त करने का दावा करते हैं, वह उनके कितने मजबूत घोड़े हैं। 15 अगस्त का समारोह सिर पर है। सेना के जवान पुरानी दिल्ली के इलाके ही नहीं बल्कि पूरी दिल्ली के चप्पे-चप्पे पर नजर रखे हुए हैं। सुरक्षा एजेंसियां पहले से ही सेना और पुलिस को सतर्क कर चुकी हैं। हालांकि अभी तक किसी कट्टरपंथी या असामाजिक तत्व की ओर से धमकी नहीं आई है और भगवान करे न आए, लेकिन ऐसे संवेदनशील समारोह के पहले और बाद तक सुरक्षा व्यवस्था चाक-चौबंद रखने की जिम्मेदारी सिर्फ कप्तान की ही नहीं है। इसमें साकी जिम्मेदारी बराबर की है। कप्तान साहब घूम रहे हैं। जायजा ले रहे हैं और भांप रहे अपने कर्मचारियों के कामों को, मगर इस बीच सवाल यह भी पैदा होता है कि आखिर पुलिस महकमे के अधिकारी और कर्मचारियों की कार्यप्रणाली में का सुधार होगा। बड़े अफसर से लेकर सरकार चलाने वाले बड़े-बड़े दावे करते हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर उनके दावे वही ‘लालबत्ती की सलामी’ जैसे साबित होते हैं। जब कारवां गुजर जाता है, तब दिल्ली पुलिस के कर्मचारी जागते हैं।

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