बुधवार, 1 अगस्त 2012

पहले सुनो, फिर सुनाओ


विश्वत सेन
दिन, बुधवार। दिनांक : एक अगस्त, 2012। स्थान : केंद्रीय सचिवालय के मेट्रो स्टेशन का प्लेटफार्म नंबर-दो और चार इंटरसेक्शन। समय : दोपहर बाद दो  बजकर 10 मिनट। एक अन्ना समर्थक हाथ में तख्ती लिए लोगों को भ्रष्टाचार और सरकार के खिलाफ उकसाने का काम कर रहा है। मैं भी उसी राह से होकर गुजर रहा था। मैंने भी उसे देखा। लोग उसे देखते और आगे बढ़ जाते। उस समय मैं अपने मोबाइल फोन के ईयरफोन पर किशोर कुमार का गाना-‘आने वाला पल जाने वाला है’ सुन रहा था। जब मैंने अन्ना के समर्थक को देखा, तो मेरे दिमाग में एक बात आई। मैंने सोचा, ‘पिछले साल अन्ना हजारे ने पंद्रह अगस्त को अनशन शुरू किया गया था, तो उन्हें महात्मा गांधी जैसा अनशनकारी कहकर नवाजा गया था। इस साल अरविंद केजरीवाल खुद को महात्मा गांधी जैसा अनशनकारी कहलाना चाह रहे हैं।’ मेरे दिमाग ने कहा, ‘बेटे, आज अरविंद और अन्ना के साथ-साथ उनके समर्थक की भी परीक्षा ले ही लो। क्या सही मायने में अन्ना, अरविंद और उनके समर्थक महात्मा गांधी और उनके समर्थक का दर्जा प्राप्त करने के लायक हैं? क्योंकि महात्मा गांधी जब आंदोलन या अनशन करते, तो वह किसी से समर्थन नहीं मांगते थे।बस, वह आंदोलन कर देते थे। हां, आंदोलन या अनशन करने के पहले वह शासन के अधिकारियों, नेताओं से लेकर देश के नेताओं, सेनानियों, समर्थकों, समर्थकों के समर्थकों और अवाम को सुनते जरूर थे। सुनाने के बाद उनकी बातों के निचोड़ को आत्मसात करने की कोशिश करते फिर आन्दोलन या अनशन का सूत्रपात करते। यही वजह है कि कई बार बापू को खुद का आन्दोलन या अनशन जनता की भावनाओं के अनुरूप नहीं लगता, तो वे अपना आन्दोलन वापस ले लेते थे ’ मेरे मन ने सोचा, ‘क्या अन्ना, अरविंद और उनके समर्थकों को सुनने की आदत है या फिर सिर्फ अपनी थोथी दलील जनता और जनदरबार को जबरन सुनाना चाहते हैं। यदि नेता में सुनने की आदत होगी, तो उसके समर्थकों में सुनने की आदत होना स्वाभाविक है।’ 
मन में यह विचार आते ही मैं गांधी टोपी पहने अन्ना अरविंद के समर्थक के पास गया। जो ‘मैं अन्ना हूं’ लिखा हुआ गांधी टोपी पहने हुए थे। मैंने बिना उसे किसी प्रकार की सूचना दिए उसके कान से ईयरफोन का दूसरा सिरा सटा दिया और कहा, ‘ऐ भाई, इसे सुनो। किशोर दा का यह अच्छा गाना है। यह गाना मुझे अच्छा लग रहा है, तो तुम्हें भी अच्छा लगना चाहिए।’ उसने ईयरफोन को झटक दिया। मैंने दोबारा ईयरफोन उसके कान में सटाते हुए कहा, ‘ऐ भाई, मैं विश्वत सेन पत्रकार हूं। यह गाना मुझे अच्छा लग रहा है। तुम्हें भी अच्छा लगना चाहिए। तुम्हारे जीवन में काम आएगा।’ इस बार अन्ना के उस समर्थक ने गुस्से से ईयरफोन को झटकते हुए कहा, ‘दूर हटो। दिखाई नहीं देता, मैं आंदोलन का प्रचार कर रहा हूं। अन्ना-अरविंद अनशन पर हैं और तुम्हें मजाक सूझ रहा है।’ मैंने उसे समझाने वाले लहजे में कहा, ‘भाई, यह आंदोलन और अनशन बेकार है।’ उसने कहा, ‘क्यों?’ मैंने कहा, ‘वह इसलिए, क्योंकि जिस तरह मेरे द्वारा जबरन तुम्हारे कान में ईयरफोन लगाने पर तुम्हें बुरा लगा, ठीक उसी तरह सुचारू रूप से चल रहे देश के जीवन व्यापार के दौरान टीम अन्ना का भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन और अनशन भी लोगों को बुरा लग सकता है। वह इसलिए कि इस संसार में प्रायः हर आदमी सुविधाभोगी है और वह सुविधा पाने के लिए किसी भी हद को पार कर सकता है। यदि किसी को सरकारी अस्पताल में इलाज कराने के लिए सबसे पहले डॉक्टर तक जाने के लिए हर प्रकार का जुगाड़ करता है तो कोई राशन कार्ड बिना किसी हील-हुज्जत के बनाने के लिए बाबुओं को रिश्वत भी दे सकता है भ्रष्टाचार इस देश की कोई आज की समस्या नहीं है। यह राज शासन के टाइम से चला आ रहा है। हिन्दू राजाओं के काल में इसे "उपहार", मुगलकाल में "नजराना" और अब "सुविधाशुल्क" कहा जाता है। ’ मैंने उसे समझाया, ‘यह बात दीगर है कि अन्ना का आंदोलन भ्रष्टाचार के खिलाफ है, लेकिन यह देश पर जबरन थोपा गया स्वार्थपूर्ण तथाकथित आंदोलन है। यदि सही मायने में यह आंदोलन होता, तो तुममें और तुम्हारे नेताओं में सुनने की आदत होती, मगर न तुम किसी दूसरे की सुनते हो और न ही तुम्हारे नेता। इसीलिए यह आंदोलन नहीं,बल्कि हठ है। ’ मैंने उसे और उसके दोस्तों को कहा, ‘अगर तुम अरविंद और अन्ना तक पहुंच गए, तो जाकर कहना कि वह और उनका दल पहले सुनने की आदत डाले, फिर जनता और सरकार को सुनाए। उनका कम बन जाएगा’ 

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