शनिवार, 3 मार्च 2018

यह 'जोर' खतरनाक है

विश्वत सेन
आज त्रिपुरा में ढाई दशक पुरानी वामदल की 'मानिक' सरकार ध्वस्त हो गयी। आज के करीब पांच साल पहले बंगाल में भी ज्योति बसु का राजनीति से संन्यास लेने के बाद बनी बुद्धदेव सरकार भी ध्वस्त हो गयी थी। दोनों सरकारों की सरकार के अवसान में एक ही समानता है और वह हिंसा है। तब महीनों तक राजनीतिक जुगलबंदी से महीनों तक सिंगूर जला था, आज दार्जिलिंग समेत पूरा देश जल रहा है।
आज देश में हर काम जोर-जबरदस्ती किया जा रहा है या कराया जा रहा है। राजनीति में दक्षिण पंथ जोर-जबरदस्ती कर रहा है, तो सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के संस्थानों में पेबस्त समर्थक। हर जगह लोग-बाग मनमानी के शिकार हैं। प्रत्यक्ष रूप से गैर-भाजपा दलों के नेताओं को जबरिया भाजपा या एनडीए के घटक दल बनने पर मजबूर किया जा रहा है या नहीं मानने पर उन्हेंं विभिन्न आरोपों में 'भितराया' जा रहा है।
सरकारी और निजी प्रतिष्ठानों में गैर-भाजपा सोच रखने वाले कामगारों को या तो धकियाया जा रहा है या फिर ऐसा माहौल बनाया जा रहा है कि आत्मसम्मानी जिल्लत और जलालत की नौकरी को रात मार दे।
देश में इस समय यह जो 'जोर-जबरदस्ती' किया जा रहा है, उसका एकमात्र कारण देश के लोगों का माइंडवाश करना है। जो उनकी बात मान गये, वे भी प्रताड़ना के शिकार और जो नहीं मानने रहे, वे प्रताड़ित तो किये ही जा रहे हैं। जो लोग प्रताड़ना के भय से कायराना अंदाज में तोहफा कबूल करवा रहे हैं, उनसे यह सोचकर बदला लिया जा रहा है कि तुम और तुम्हारे पूर्वजों ने हमें सत्ता से दूर रखा। अब हम तुम्हें अपने पास रखकर समुचित सुविधा से भी दूर रखेंगे।
आज यही वजह है कि जितनी श्रमशक्ति को हर साल देश में रोजगार दिया नहीं जा रहा, उससे कहीं ज्यादा नौकरी-पेशा लोग बेरोजगार होने के कगार पर हैं या बेरोजगार हो गये हैं। देसी-विदेशी सर्वेक्षण एजेंसियां हर साल पैदा होने वाली नयी श्रमशक्ति के आंकड़ों को तो पेश करती हैं, मगर बिरली एजेंसी ही ऐसी है, जो 40-45,  46-50, 51-55 और 56-60 आयु वर्ग के बीच नौकरी गंवाने वालों की रिपोर्ट पेश करती हो।
चौंकाने वाली बात यह भी है कि बीते चार सालों के दौरान 40-60 आयु वर्ग के कामगारों का रोजगार या तो समर्थक अधिकारियों की वजह से जा रही है या फिर मजबूरन उन्हें छोड़ना पड़ रहा है। देश में यह जो एक अलग तरह की बेरोजगारी पैदा हो रही है, वह नवसृजित श्रमशक्ति की बेरोजगारी से भी अधिक खतरनाक है।
नवसृजित श्रमशक्ति में एक युवक को रोजगार की दरकार रहती है, मगर बरसों से कार्यरत कामगारों के पीछे परिवार के अनेक सदस्यों की फौज रहती है, जिसमें नवसृजित श्रमशक्ति भी शामिल होती है। ऐसे में, जरा गौर कीजिए कि आज देश में जो 'जोर-जबरदस्ती का खेल चल रहा है, वह राजनीति के लिए ही नहीं, आम अवाम के लिए भी ख़तरनाक है।

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