गुरुवार, 8 फ़रवरी 2018

संसद में शूर्पणखा, तो फिर लक्ष्मण कौन? (विरासत के झरोखे से...भाग-चार)

विश्वत सेन

बुधवार यानी आठ फरवरी, 2018 को संसद बजट सत्र के पहले दिन दिए गए अभिभाषण पर चर्चा हो रही थी। लोकसभा में जो चर्चा हुई, उसे सुन देख नहीं पाया। राज्यसभा में हो रही चर्चा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बात सुनने को मौका मिला। मौका क्या मिला, दफ्तर में था। दफ्तर में एक साथी हैं, जो खुद को राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, भारतीय जनता पार्टी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अनन्य अनुयायी मानते हैं। अपनी भावना प्रदर्शित करने के लिए वे भाजपा भक्त अथवा सरकार भक्त समाचार चैनल ही देखते हैं। पदेन वरिष्ठ हैं, तो उनके कामों में हस्तक्षेप करना मैं उचित नहीं समझता। बुधवार आठ फरवरी, 2018 को जब मैं दफ्तर पहुंचा, तो दूरदर्शन का समाचार चैनल ट्यून कर दिया गया। इस नाते मैं भी राज्यसभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से पढ़ा जा चुटीला टाइप भाषण देखने सुनने लगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने कार्यकाल के करीब चार साल की अवधि के दौरान खुद की सरकार द्वारा किये गये कार्यों की शुरुआत करने का श्रेय पूर्ववर्ती संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की सरकार और खासकर कांग्रेस को लेकर उन कार्यों को अमलीजामा पहनाने का श्रेय खुद पर या अपनी सरकार पर दे रहे थे। बीच-बीच में वे सुसभ्य भाषा और मजाकिया लहजे में कटाक्ष भी कर रहे थे। किसी-किसी बात पर विपक्ष और कांग्रेस के सदस्यों की ओर से कटाक्ष पर विरोध भी जताया जा रहा था। इसी बीच, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोई बात कही, मुझे ध्यान नहीं है, उस पर एक अट्टहास टाइप की हंसी सुनाई दी। इस हंसी पर सत्ता पक्ष के लोगों ने ऐतराज जाहिर किया। इस ऐतराज पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने टिप्पणी की, "उन्हें हंस लेने दीजिए, रामायण के बाद पहली बार तो ऐसी हंसी सुनने को मिल रही है।"
प्रधानमंत्री की इस टिप्पणी पर सभी ने गौर किया और आपस में चर्चा की कि रेणुका चौधरी को पीएम ने "शूर्पणखा" कहा है। शूर्पणखा मतलब राक्षसी? यानी रेणुका चौधरी की हंसी राक्षसी है या फिर रेणुका राक्षसी है? तमाम तरह की बातें होने लगीं। इसी बीच, देर शाम तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस टिप्पणी पर राजनीति में उबाल आ गया।
अब में सोचने लगा कि यदि प्रधानमंत्री ने कांग्रेस की एक सदस्या को शूर्पणखा यानी राक्षसी कहा है और वह भी भरी संसद में, तब तो उसी संसद में कोई न कोई "राम" और "लक्ष्मण" भी होंगे। अब राम कौन और लक्ष्मण कौन? यह बहुत बड़ा सवाल है। वह इसलिए कि संसद की सदस्यता ने पीएम के भाषण पर कटाक्षपूर्ण अट्टहास किया, यह निंदनीय, अशोभनीय, अमर्यादित और असंसदीय है, मगर प्रधानमंत्री के एक गरिमामय पद पर आसीन होने के नाते सभ्य भाषा में किसी को राक्षस या राक्षसी नहीं कहना चाहिए।
शूर्पणखा की चर्चा जब संसद और संसद से बाहर होने लगी, तब मैंने सोचा कि क्यों शूर्पणखा और राक्षस-राक्षसी को लेकर ज्ञानवर्धन कर लिया जाए। आचार्य चतुर सेन की पुस्तक "वयं रक्षाम:" पढ़ी थी, तो उन्होंने राक्षसों को वंश या कुल रक्षक के रूप में प्रस्तुत किया है। संस्कृत के 'रक्ष' शब्द का अर्थ रक्षा करना होता है, जिसमें 'रक्ष, रक्षति, रक्षति...' करके धातुरूप और शब्द रूप भी है। इसके अलावा रक्षा संस्कृति भी है, जिसका वर्णन सनातनी ग्रंथों, पुरानों और शास्त्रों में भी है। मेरा मतलब यहीं पर आकर रुक जाने से नहीं था, मेरा मतलब गूढ़ता को जरा और धारण करने और फिर उसका सरलीकरण करने से था।
मेरा अभियान शुरू हुआ। पहले मैंने सोशल मीडिया के विद्वानों से सवाल दागा। शूर्पणखा के कितने नाम थे? इस सवाल का कारण यह था कि "रावण की बहन थी शूर्पणखा। शूर्पणखा दंडकारण्य निवासिनी थी। पंचवटी में उसने मर्यादा पुरुषोत्तम राम को देखा और वह उन पर मोहित हो गयी।" यहां इस कहानी को रोक रहा हूं और वह इसलिए कि रावण की बहन शूर्पणखा, सूर्पनखा, सुपनेखा या फिर स्वर्णनखा को शास्त्रकारों, कहानीकारों, उपन्यासकारों और देशज-विदेशज तमाम रचनाधर्मियों ने "राक्षसी" या "राक्षसनी" कहकर खलनायिका के रूप में पेश किया है, तो पहले हमें यह जान लेना जरूरी है कि "राक्षसी" या "राक्षसनी" कहते किसको हैं।
मेरे पास चौखंभा सुभारती प्रकाशन द्वारा प्रकाशित डा ब्रह्मानंद तिवारी द्वारा व्याख्यायित और अमर सिंह द्वारा रचित अमरकोश है। मैंने "राक्षसी" की परिभाषा वहां खोजना शुरू किया। इस पुस्तक के दूसरे कांड के चौथे वर्ग में 128वां श्लोक मिला। आप भी उस श्लोक से रूबरू होंगे, तो बेहतर होगा। यथासंभव इसका अन्वय के साथ अर्थ समझाने का प्रयास करूंगा। हो सकता है, मेरे अन्वय और भावार्थ में त्रुटि हो, क्योंकि अभी मैंने ढंग से हिंदी तो सीखी ही नहीं है, तो संस्कृत क्या खाक बांचूंगा। फिर भी...।
श्लोक:-
"कुणि: कच्छ: कांतलको नन्दिवृक्षोsथ राक्षसी।
चंबा धनहरी क्षेम-दुष्पत्र-गणहासका:।।"

अन्वय: 1
कुणि: कच्छ:= कुणिणक: अच्छ: स: कुणिकच्छ:। कुणिक:=सूर्यपुत्र भगवान शनि और अच्छ:=आंख।
अर्थात, सूर्यपुत्र भगवान शनि की आंख के समान आंख हो जिसकी।
सूर्यपुत्र शनि देव को कणिकाक्षी भी कहा जाता है।

अन्वय:2

कांतलको=कांत: कथयसि चंद्रमाश्च अलक: केशवारूणि। अर्थात चंद्रमा की तरफ बाल उठे हों जिसके।

अन्वय:3
नंदिवृक्षोथ=भगवान शंकर वाहन: नंदी अर्थात वृषभ: समान वृक्ष: अर्थात वक्ष: तथा ओष्ठ:
यानी बैल के समान वक्ष और ओंठ हों जिसके।
चंडा=विकराल
धनहरी=मेघ के समान काली
क्षेमदुष्पत्र=उत्पात मचाने वाला
गणहासका:= समूह में खड़े लोगों की हंसी के समान अकेला हंसने वाला या अट्टहास करने वाला।

भावार्थ

जिसकी आंखों से अंगारे बरसते हों, जिसके बाल आकाश की ओर उठे हों, चेहरा कुरूप एवं छाती बैलों जैसी हो, बदन विकराल हो, जो हमेशा उत्पात मचाने वाली हो; वह "राक्षसी" या "राक्षसनी" कहलाती है।

अब "राक्षसी शूर्पणखा ने मर्यादा पुरुषोत्तम राम के रूप-गुण पर मोहित होकर प्रणय निवेदन किया, तो उन्होंने कहा-"मेरे पास मेरी भार्या सीता तो है, मगर लक्ष्मण अविवाहित है; तुम उसके पास जाओ। कामांध "राक्षसी" शूर्पणखा लक्ष्मण के पास गती और प्रणय निवेदन किया। लक्ष्मण ने फिर उसे रामजी के पास भेज दिया पुनश्च राम ने लक्ष्मण के पास। अंत में उसने लक्ष्मण से विवाह करने की जिद ठान ली, जिसपर लक्ष्मण ने उसका नाक काट दिया। इस घटना के बाद वह लंका गती और रावण से व्यथा बताती। रावण ने खर-दूषण को भेजा। आदि-आदि।"
~सोशल मीडिया विद्वान और महाज्ञानी गूगल महाराज के अनुसार।
अब सवाल यह पैदा होना स्वाभाविक है कि यदि कांग्रेस की सदस्या ने संसद में प्रधानमंत्री के भाषण के दौरान अट्टहासी उपहास उड़ाने की वजह से "राक्षसी" हो सकती है, तो उन्हीं सत्तपक्षी या विपक्षी सदस्यों में से कोई न कोई तो राम और लक्ष्मण भी होगा?

नोट: यह लेख किसी राजनीतिक दुर्भावना, कटाक्ष या किसी आम या खास व्यक्ति की आलोचना के लिए नहीं लिखा गया है। यह महज मन में उपजे सवालों का जवाब ढूंढने का प्रयास भर है।

जारी.....


कोई टिप्पणी नहीं: