मंगलवार, 6 फ़रवरी 2018

'....अब आप अनंत कुमार से प्रादेशिक समाचार सुनिए' (विरासत के झरोखे से भाग-तीन)

विश्वत सेन

1980 के दशक बिहार (तब झारखंड राज्य नहीं बना था) विकास कर रहा था. शाम 7.30 बजे तली में सटे किरासन तेल से ऊर्जा लेकर मद्धम लालिमा वाले लौ के साथ लालटेन प्रकाशमान अंधेरों को चीरने का काम करता रहता. सर्दी, गर्मी और बरसात के थपेड़ों से जूझने वाले चिरायु लालटेन के इर्द-गिर्द लोग बैठे रहते. वे दिनभर के कामों से थके रहते. उधर, गौ माताएं पागुर पारतीं, भैंसें अपनी पूछों से रक्त पिपासु मच्छरों को भगाने का उपक्रम करतीं, मकड़ियां अपने ही बुने जाल से आजाद होने का प्रयास करतीं, फतींगे लालटेन के मद्धम प्रकाश के इर्द-गिर्द मंडराते रहते और छिपकलियां उन फतींगों को चट करने की फिराक में लगी रहतीं.
इस बीच, हम जैसे अबोध बच्चे चिरायु लालटेन मद्धम लालिमा लिये देदीप्यमान लालटेन के प्रकाश में किसी वीर की भांति गोल घेरे में चक्रव्यूहाकार बैठे रहते. इस दौरान हमारी आंखें पुस्तकों के अक्षरों के साथ युद्ध कर रही हाेतीं. उधर, खाट या फिर चौकी पर बाबूजी अपने सहकर्मी के साथ बैठे होते. सामने वाली चौकी पर बाबा और एक स्पेशल खाट पर दुखहरण पंडित जी. तभी रेडियो पर सुस्पष्ट बुलंद आवाज "ये आकाशवाणी का पटना केंद्र है. अब आप अनंत कुमार से प्रादेशिक समाचार सुनिए" उभरती.
इस आवाज के सुनते ही चिरायु लालटेन के पास चक्रव्यूहाकार बैठे अबोध बालकों, खाट-चौकी पर बैठे बड़े-बुजुर्गों, गौशालाओं की गाय-भैंसों, मकड़ियों और छिपकलियों के कान खड़े हो जाते. लगता, 'सभी इस आवाज की प्रतीक्षा कर रहे हाें.' सबका तात्कालिक कार्य-व्यवहार बंद हो जाता. रेडियो पर प्रसारित वाक्य के दो शब्द 'आकाशवाणी' और 'अनंत' मानो हमारी चेतना को अनंत शून्य में लेकर चला जाता. 'आकाशवाणी' शब्द सुनते ही लगता, 'अब अनंत आकाश में देवी-देवता, यक्ष-गंधर्व, किन्नर-किरीट सभी उपस्थित होंगे और आकाशवाणी होने वाली है-'देवव्रत, आज से तुम भीष्म कहलाओगे.' उस समय हमारे बाल मन के लिए आकाशवाणी का मतलब यही था.
पटना रेडियो स्टेशन के समाचार वाचक अनंत कुमार की बुलंद आवाज सुनकर यही प्रतीत होता, मानो इस आवाज में सूर्य, चंद्रमा और पृथ्वी एक कतार में खड़े हों. समाचार वाचक अनंत कुमार हमारी आकांक्षाओं के अनुरूप कई तरीकों से विभिन्न समाचारों को पढ़ रहे होते. हम एकाग्रतापूर्वक उस दैवीय आवाज को सुनते. हमारी एकाग्रता तब भंग होती, जब 7.39 पर वे कहते, 'एक बार फिर से मुख्य समाचार सुनिए.' सबसे बड़ी बात यह होती, जिस दिन समाचार पढ़ने अनंत कुमार नहीं आते, लगता, 'आज हमने कुछ खो दिया है.' हालांकि, उनके स्थान पर श्री संजय बनर्जी को भेजा जाता, मगर मन में इस बात की कसक बनी रहती. संजय बनर्जी मुख्य रूप से क्रिकेट की कमेंट्री के लिए जाने जाते थे.
आवाज की सुपष्टता और बुलंदी अमीन चाचा यानी श्री अमीन सयानी और श्री अमिताभ बच्चन की आवाजों में भी देखने को मिलती है, मगर अनंत कुमार के आगे सारी आवाज आज भी फीकी लगती है. अनंत कुमार की उसी आवाज को सुनने की लालसा पिछले साल भी तब जगी, जब मैं पटना में स्थानांतरित कर दिया गया था. जिज्ञासा को शांत करने रेडियो स्टेशन पहुंचा, तो पता चला कि आकाशवाणी के पटना केंद्र के समाचार वाचक अनंत कुमार अनंत लोकवासी हो गये और जिस युग में वे समाचार वांचा करते थे; उस युग में रिकाॅर्डिंग की व्यवस्था नहीं थी. समाचार डाइरेक्ट टेलीकास्ट किया जाता था.
खैर, 1980 के ही दशक में दूरदर्शन के क्षेत्र में महान क्रांतिकारी हुई. इस दौरान रामानंद सागर की रामायण और बीआर चोपड़ा का महाभारत धार्मिक धारावाहिक आया. रामानंद सागर के रामायण ने टेलीविजन को लोकख्याति प्रदान की और बीआर चोपड़ा के महाभारत ने उसे घर-घर, झोपड़ी-मोहल्ले का वासी बना दिया. हिंदी समाचार जगत के क्षेत्र में अखबार और रेडियो के अलावा दूरदर्शन ने भी जगह बना ली थी, मगर उस पर सरकारी होने का ठप्पा लगा हुआ था.
दूरदर्शन समाचार के दर्शकों को सरकारी ठप्पे से आजाद कराने के ध्येय से श्री एसपी सिंह 'जनता के द्वारा, जनता के लिए' के सिद्धांत पर चौबीस घंटे का समाचार चौबीस मिनट के कार्यक्रम 'आजतक' के रूप में लेकर आए. इस कार्यक्रम का अलग तेवर-कलेवर था. दिल्ली के कनॉट प्लेस स्थित एफ-19 इनर सर्किल में इसका दफ्तर और स्टुडियो दोनों था. दर्शकों से मिल रहे रिजल्ट के बाद इसे दूरदर्शन से हटाकर पूरे 24 घंटे का खांटी निजी समाचार चैनल बना दिया गया.
हालांकि, इस दौर में हिंदी-अंग्रेजी के अन्य समाचार कार्यक्रम थे, मगर 24 मिनट से 24 घंटे का यह पहला प्रयोग था. इस प्रयोग के बाद जब पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने मीडिया में 27 फीसदी विदेशी निवेश की छूट दी, तो 24 घंटे वाले निजी समाचार चैनलों की बाढ़ आ गयी. आज  1980 के दशक से लेकर 21वीं सदी के दूसरे दशक के उत्तरार्द्ध तक आलम यह हो गया है कि निजी चैनलों पर ही युद्ध लड़ा जाता है और इसी पर फैसले भी सुना दिए जाते हैं. आभासी और दूरदर्शन वाले इस मीडिया के दौर में मानो अनंत कुमार की वह देदीप्यमान आवाज कहीं गुम सी हो गयी है.


जारी....

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