मंगलवार, 20 फ़रवरी 2018

झोले वाला किरोड़ीमल (विरासत के झरोखे से...भाग-आठ)

विश्वत सेन

सदी के महानायक श्री अमिताभ बच्चन। वे फिल्म बनाने के शौकीन और हम देखने के। अच्छा लगता, उनकी फिल्म देखकर। कुछ सीखने को मिलता। उनकी फिल्मों में एक चीज कामन थी और वह थी किरोड़ीमल या फिर सेठ किरोड़ीमल। यह किरोड़ीमल फिल्म में सिक्वेंस के हिसाब पटकथा लेखक डालते थे या फिर दर्शकों के बीच रोचकता पैदा करने के लिए महानायक किरोड़ीमल वाला एकाध सीन पेबस्त कराते, इसका मुझे पता नहीं। इसे वही जानें। हमने तो देखा, उसी को फिल्म की ब्यूटी मानी। अब जैसे फिल्म जादूगर को ही ले लें। पूरा एक सीन किरोड़ीमल पर पेबस्त है।
 खैर, फिल्म है। देखा, मनोरंजन और बात खत्म। मगर, बाद के बरसों में जानने-समझने का मौका मिला तो समझा, 'हो सकता है दिल्ली के किरोड़ीमल कॉलेज से उनका नाता रहा है, इसलिए एक काल्पनिक किरदार के तौर पर उसे पेश किया गया। वैसे, फिल्मों के लिए किरोड़ीमल टाइप के सेठों के किरदार आम तौर पर काफी प्रचलित रहा है। इस लिहाज से भी हमने इस चिरजीवि पात्र पर ज्यादा माथा-पच्ची नहीं की। भाई फिल्म है, उसे मनोरंजन के तरीके से दो। अब यह थोड़े पता था कि 20वीं सदी के फ़िल्मों का यह चिरजीवि किरदार 21वीं सदी तक अपने आपको फिल्मी पर्दे से निकालकर आम जनजीवन में इतनी गहरी पैठ बना लेगा? ये बात अब समझ में आ रही है कि सदी के महानायक श्री अमिताभ बच्चन और उनके पहले के फिल्मकारों ने किरोड़ीमल को जीवंत क्यों बनाए रखा था।
एक बात और। वह यह कि हमारे यहां भारत में झोला का बहुत अधिक महत्व है। दुनिया मंगल पर जाने की सोच रही है, मगर आज भी भारत में एक कहावत सरेआम सार्वजनिक तौर पर प्रचलित है, "मेरा क्या, मैं तो ठहरा फक्कड़। झोला उठाऊंगा और चल दूंगा।"
ये झोला और किरोड़ीमल वाला फंडा मुझे बीते चार-पांच दिनों से बखूबी तब और समझ में आने लगा है, जब एक महाघोटाले का उद्भेदन हुआ है। मैं इस पचड़े में नहीं पड़ना चाहता कि उसके राजनीतिक निहितार्थ क्या हैं, मगर यह जरूर समझ में आ गया कि बैंकों का हजारों करोड़ रुपयों का कर्ज डालकर विदेश भागने वाले वहीं तो झोले वाले किरोड़ीमल हैं, जिनका अक्स अक्सर फ़िल्मों में उकेरा गया है। यह बात दीगर है कि संदर्भों में बदलाव आया है, मगर चरित्र तो हू-ब-हू वहीं है।
आपने, हमने सबने देखा है कि फिल्मों के किरोड़ीमल जनता के पैसों पर एशो-आराम का साम्राज्य खड़ा करते हैं और जब भेद खुल जाता है या खुलने लगता है, तो झोला उठाकर विदेश भाग जाते हैं या फिर भागने की तैयारी कर रहे होते हैं। अब सवाल यह पैदा होता है कि क्या सरकार इन झोले वाले किरोड़ीमलों को फिल्मों के नायकों की तरह पकड़ेगी या फिर...?

जारी...

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