रविवार, 27 अप्रैल 2014

यह विकास नहीं, विनाश लीला है

विश्वत सेन

हमरे बदरू मियां की कुंभकर्णी नींद टूटी तो वे बौखला गये. बौखलाहट में घरैतिन को भला-बुरा कहा, बच्चों को लपड़बताशा खिलाया और मेमनों पर डंडों की बारिश करायी. उनकी इस हरकत से सभी भौंचक थे. किसी को यह पता नहीं चल रहा था कि आखिर ये मेहरबानी किस बात की? हिम्मत करके घरैतिन ने मेहरबानी का सबब पूछा, तो वे बिफर पड़े. उन्होंने कहा-‘गर्मी से मेरी नींद खुल गयी. आनेवाले समय में लाखों-करोड़ों का नुकसान होने जा रहा है. आसमानी गर्मी, राजनैतिक गर्मी और बातूनी गर्मी से चुनावी सरगर्मी की तपिश बढ़ गयी है. इसका तो तुम लोगों को अंदाजा ही नहीं है.’
घरैतिन ने दोगुने गुस्से में कहा-‘सत्यानाश हो तुम्हारी नींद का. तुम्हें गर्मी सता रही है और तुम हमें. ऐसी कमाई को लुटेरे लूट ले जायें, तो अच्छा. मैं सत्ता की सीढ़ी पर चढ़कर सोनम्मा को मोदीचूर का लड्डू चढ़ाऊंगी.’
घरैतिन की कुटीली बात सुनकर बदरू मियां का गुस्सा सातवें आसमान पर चढ़ गया. उन्होंने बघिया चिग्घाड़ लेते हुए कहा-‘तुम्हें क्या पता है कि इस समर में गर्मी पैदा करने के लिए हजारों करोड़ रुपये दांव पर लगे हैं और तुम हो कि बस.’ घरैतिन ने उनसे भी दोगुने शेरनी दहाड़ में जवाब देते हुए कहा-‘इन हजारों करोड़ रुपये से मेरा क्या? मेरे लिए तो सोनम्मा ही बेहतर है. तुम्हारे लिए यह चुनावी सरगर्मी की तपिश मजेदार होगी. लोग जितना ज्यादा तड़पेंगे, तुम्हें उतना ही मजा आयेगा. मगर घर का चुल्हा-चौका गर्मी या फिर ख्याली पुलावों से नहीं चलता. चुल्हा-चौका खाद्यान्नों, घर की आमदनी और आपसी प्रेम से चलता है. तुम लोगों ने आज तक किया ही क्या है? सिवाय देश को कभी जाति के नाम पर, कभी धर्म और संप्रदाय के नाम पर, कभी आरक्षण के नाम तो कभी रामजी की पुलिया के नाम पर तोड़ने के. तुम अपने दामन के दाग को कभी नहीं देखते, मगर विरोधियों के बिस्तर पर पड़े सिकन को झांकने में न तो शर्म आती है और न ही जमीर धिक्कारता है.’
घरैतिन की दलील के आगे बदरू थोड़ा नरम पड़े, पर गरमी नहीं छोड़ी. बोले-‘तुम्हें क्या पता कि बाहर इस गर्मी से कितना कोलाहल मचा है.’ तपाक से घरैतिन ने जवाब देते हुए कहा-‘हां, मुङो तो यह भी पता है कि इस कोलाहल में इक शांति भी है. यह शांति तूफान आने के की शांति है. मगर ध्यान रखना इस तूफान से आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक, मानसिक और पारिवारिक विनाश ही होगा. यह विकास लीला नहीं, विनाश लीला है, जो देश-समाज को गर्त में ढकेलेगा. भाई को भाई से, परिवार को परिवार से, जाति को जाति से और धर्म से धर्म को तोड़ेगी.’

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