बुधवार, 11 जुलाई 2012

‘गलती-सलती को एक्सकूज मी कहिएगा सर’

विश्वत सेन
दिल्ली की सड़कों पर रात को शराब के नशे में सवारियों को गंतव्य तक पहुंचाने का काम करता एक रिक्शावाला किराया लेने के बाद सम्मान में कहता है, ‘गलती-सलती को एक्सकूज मी कहिएगा सर।’ देश के दूसरे राज्य से रोजी-रोटी की तलाश में राजधानी आया इस रिक्शा वाले को यह पता है कि जिस सवारी को हम इतनी रात गए गंतव्य तक लेकर आए हैं, वह हमारे लिए भगवानस्वरूप है। वह हमारी रोजी है और रोजी को सम्मान करना हमारा परम कर्तव्य है। यह बात दीगर है कि उसे अंग्रेजी के ‘एक्सक्यूज मी’ शब्द का सही उच्चारण और प्रयोग करना नहीं आता है, मगर वह इतना जानता है कि यह शब्द किसी के सम्मान में कहा जाता है। अनपढ़, रिक्शा खींचने के दर्द को शराब के नशे में भूल जाने की कोशिश करने वाला रिक्शा वाला रोजी को सम्मान करना जानता है।
देश का प्राय: किसी भी पेशे से जुड़ा हर व्यक्ति रोजी को सम्मान करता है, मगर हमारे देश के पढ़े-लिखे और देश को चलाने की जिम्मेदारी कंधों पर उठाने वाले राजनेताओं को लगता है इसका ज्ञान नहीं है। तभी तो वह सबसे अधिक टैक्स चुकाने वाले मध्यम, व्यापारी और गरीब वर्ग के लोगों पर निशाना साधते हैं। दुख तब होता है, जब पेशे से वकील और इससे पहले देश की अर्थव्यवस्था की बागडोर संभालने वाले गृहमंत्री पी चिदंबरम प्रधानमंत्री की चिरौरी में मध्यम वर्ग पर निशाना साधते हैं। मध्यम वर्ग उस दुधारू गाय की तरह है, जिसे दुधिया अपनी इच्छानुसार दोहन करता है, मगर वह कुछ नहीं बोलती है। मालिक समय पर दाना-पानी दे देता है, तो ठीक और यदि नहीं दिया तो भी ठीक।
गृहमंत्री प्रधानमंत्री की चिरौरी में यह बयान तब आता है, जब दुनिया की सबसे ताकतवर पत्रिका ‘टाइम’ ने प्रधानमंत्री के व्यक्तिगत कार्यों पर टिप्पणी करती है। यह टाइम पत्रिका की ओर से प्रधानमंत्री के कार्यों पर कोई पहली बार टिप्पणी नहीं की गई है। इसके पहले भी इस पत्रिका ने प्रधानमंत्री को जनता के कटघरे में खड़ा किया है। अकेले टाइम पत्रिका ही क्यों, अभी हाल ही में भारतीय अर्थव्यवस्था की रेटिंग को घटाने वाली दुनिया की दो नामी-गिरामी कंपनियों के अधिकारियों ने भी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को अक्षम कहकर सुशोभित किया था।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर देश के विरोधी दलों के अलावा दुनिया की अर्थव्यवस्था पर नजर रखने वाले लोग यदि टिप्पणी कर रहे हैं, तो यह उन्हें बदनाम करने की साजिश नहीं की जा रही है या उनकी सरकार पर उंगली नहीं उठाया जा रहा है, बल्कि एक अर्थशास्त्री होने के नाते उनसे देश-दुनिया के लोगों को अपेक्षा है। देश के नागरिक सरकार से अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के साथ ही आवश्यक वस्तुओं के सस्ती होने की उम्मीद रखते हैं, तो दुनिया के देश आर्थिक क्षेत्र में निवेश के माध्यम से व्यापार को बढ़ाना चाहते हैं। यूपीए-दो के कार्यकाल में इन दोनों स्तर पर आर्थिक स्थिति डावांडोल हुई है। एक ओर महंगाई और भ्रष्टाचार की वजह से देश के लोगों का जीना दूभर हो रहा है, तो दूसरी ओर सरकार की नीतियों की वजह से विदेशी निवेशक अपना हाथ पीछे खींच रहे हैं। ऐसी स्थिति में एक अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री पर टिप्पणी होना भी लाजिमी है। अब यदि इस पर पर्दा डालने के लिए सरकार के ही किसी मंत्री द्वारा बयान देकर मामले को ‘डायवर्ट’  करने की कोशिश की जाती हो, तो इससे ज्यादा हास्यास्पद और भला क्या हो सकता है?

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