मंगलवार, 31 जनवरी 2012

आज की लड़की, कल की मां है



आज की लड़की, कल की मां है,
न्योछावर करती सब पर जां है।
उमड़ पड़े तो उसकी ममता प्यारी,
अपने पे आए तो चंडी से भारी।
माता है धरणी की देवी,
भर देती है बेटे की जेबी।
वही बेटा फिर चिल्लाता है,
जब मां खाती है बुढ़ापे में जलेबी।
नाभि का रिश्ता होता दोनों का,
मां के रोते बेटा है समझ जाता है।
मां भी समझ जाती है झट से,
जब वह पेट में कुलबुलाता है।
वह जब गर्भ में पलता रहता,
मां की हर भाषा जाता है समझ।
अब वह मां की बात-बात पर,
उसे ही कहता रहता नासमझ।
बड़ा होते ही बन गया धुरंधर,
मां की चुटिया पकड़ लेता छुछुंदर।
गर्लफेंड लेकर वह झटपट,
घुस जाता है रेस्टोरेंट के अंदर।
चरित्रहीन स्वार्थी हो जाता वह,
फिर भी माता नहीं बोलती है।
सारे राज दफन कर सीने में,
चुपचाप हलाहल पीती है।
सीने से चिपका के रखती वह,
पर बेटा दुत्कारता है।
दुसह, विपत भारी पडऩे पर,
हे मां, ही वह चिल्लाता है।
जब बेटा बन जाता है बाप,
भ्रूण हत्या वह करवाता है।
मां बनी उस लड़की से,
जघन्य पाप करवाता है।
मर्दानगी का वह दिखाता है जोश,
बिन बीवी के उड़ जाता है होश।
उसकी बीवी भी लड़की थी,
उसे भी लड़की ही जनी थी।
मद में चूर, स्वभाव में क्रूर,
मातृ ऋण को जाता है भूल।
वंश चलाने की खातिर,
सृष्टि पर चलवाता है शूल।
लड़की की संख्या हो रही है कम,
लड़की के लिए हो रहा है बेदम।
अब निठल्ला बन बैठा है कुंआरा,
लड़की को नहीं लगा वह प्यारा।
किस्मत पर अब वह पछताता रहा है,
बेचारी भाभी को पटा रहा है। 
कर रहा है वह मिन्नतें भारी,
शादी करा दो, मेरी भाभी प्यारी।
वह भाभी भी तो एक लड़की है,
जोर से दी उसने एक घुड़की।
नासिका छिद्र को दबाकर,
लजाकर उसने नेटा सुड़की।
जा रे सत्यानाशी, जा रे नाशपीटे, 
तू ही हमारी प्रजाति को उजाड़ा।
तेरी शादी कभी नहीं कराऊं,
तूने ही तो सारा खेल बिगाड़ा।


विश्वत सेन/जनवरी 31, 2012


कोई टिप्पणी नहीं: