शनिवार, 21 जनवरी 2012

खोजेगा इंडिया, पढ़ेगा इंडिया/विश्वत सेन


गांव-गांव, बस्ती-बस्ती, 
कदम से दम बढ़ाएगा।
दिलों से जीतर दिलों में, 
ज्ञान दीप जलाएगा।
आखरों की मोतियों से, 
दीपमाल बनाएगा।
निरक्षरों को अक्षरों से, 
रोज मेल राएगा।
मेल-मिलाप से जोड़र, 
पढ़ायेगा इंडिया।
खोजेगा इंडिया, पढ़ेगा इंडिया।
पहाडिय़ों की कंदराओं में,
छिपा है इतिहास अपना।
देश के जर्रे-जर्रे में,
बसे हैं गांधी-सुभाष अपना।
देश- काल से उठर,
सुनाएगा इतिहास इंडिया।
खोजेगा इंडिया, पढ़ेगा इंडिया।
गुजरात के सौराष्ट्र से,
पश्चिम के महाराष्ट्र से,
हिमालय की पहाड़ी से,
बंगाल की खाड़ी से,
श्मीर की बहार से,
दक्षिण के पठार से,
उत्तर में पंजाब से,
गंगा के दोआब से,
मिलजुलर आपस में,
 आवाज उठाएगा।
खोजेगा इंडिया, पढ़ेगा इंडिया।
बुद्ध की नगरी से,
सागर की गगरी से,
सांची के स्तूप से,
रेगिस्तान के धूल से,
खजुराहो के मंदिर से,
झाडिय़ों के अंदर से,
सुर से सुर मिलाएगा,
मधुर संगीत सुनाएगा।
गाएगा इंडिया, पढ़ाएगा इंडिया,
खोजेगा इंडिया, पढ़ेगा इंडिया।
अनुसंधानों पर जोर है,
प्रतिभाओं में होड़ है,
प्रतिभा खोजी जाती है,
मुनिया बरी चराती है,
मंगरु बैल चराता है,
स्कूल खुला रह जाता है,
मास्टर बच्चे बन जाते हैं,
भोजन रोज पकाते हैं,
रजिस्टर चट र जाता है,
शिवा भूखा रह जाता है,
भूखे पर भी डंडा,
नहीं बरसाएगा इंडिया।
खोजेगा इंडिया, पढ़ेगा इंडिया।

विश्वत सेन
जनवरी 22, 2012

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