घड़ियाल बाबू
रविवार, 23 अक्तूबर 2011
अनजान पथ का राही हूं
अनजान पथ का राही हूं
फक्कड़पन का हमराही हूं
तिमिरांध मिटाना है मुझको
ज्ञानांजन लगाना है मुझको
दुर्गम पथ हो मेरा आलोकित
यदि ज्ञान दें हमको समयोचित
अडिग अविचल डटा रहूंगा
नीलकंठ से सटा रहूंगा
यही मेरी अभिलाषा है
मृगतृष्णा है, मृदुभाषा है
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