बुधवार, 12 अक्तूबर 2011

जाति विशेष की धरोहर नहीं है ‘दलित’



विश्वत सेन
भारतीय राजनीति का प्रचलित शब्द ‘दलित’ जाति विशेष के साथ जुड़कर रूढ़ हो गया है, मगर हमारे देश के मनीषियों और कवियों ने शतकों पहले व्यापक पैमाने पर इसका आकलन किया है। आधुनिक राजनीतिक और मीडिया जाति विशेष पर हो रहे अत्याचार और उनकी मांगों पर हाय-तौबा मचाते हैं, लेकिन कवियों ने देश के हर दीन-हीन और लाचार को दलित माना है। उनके लिए दलित शब्द किसी जाति विशेष के दायरे में सिमटा हुआ नहीं था, बल्कि इसकी व्यापकता अपार थी। तभी तो मुक्तछंद के प्रवर्तक और छायावादी कवि सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ ने पूरी कविता ही दलितों पर लिख डाली है। उन्होंने ‘दलित जन पर करो करुणा’ नामक कविता में ईश्वर यानी गुलाम भारत के शासक अंग्रेजों से दलितों पर दया करने की गुहार लगाई है। इसमें उन्होंने अंग्रेजी सरकार से स्पष्ट रूप से कहा है कि तुम लोगों पर इतना अधिक अत्याचार न करो। दीन-हीन, गरीब की गरीबी तो इस देश की नीयति है, लेकिन तुम्हारा अत्याचार उनसे कहीं अधिक दीन-हीन है। 
इतना ही नहीं ‘निराला’ ने अकेले दलितों के माध्यम से ही सरकार पर प्रहार नहीं किया है, बल्कि ‘वह तोड़ती पत्थर, देखा मैंने इलाहाबाद के पथ पर’ में आजादी के बाद की सरकारों की दशा-दिशा का भी अनोखा चित्रण किया है। यह उनकी कलम की धार का ही कमाल है कि उन्होंने आजादी के बाद और उसके पहले की देश की दयनीय स्थिति का चित्रण महज चंद शब्दों में पूरा कर दिया है। यह नियंता की मार नहीं, बल्कि देश के नीति-निर्धारकों की अदूरदर्शी सोच का दुष्परिणाम है। आज देश के गरीब गरीबी की दलदल में पहले से कहीं अधिक धंसते जा रहे हैं और अमीर अमीरी की अट्टालिका बना रहे हैं। इस असमानता का कोई परावार नहीं है।
दरअसल, सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’  हिन्दी कविता के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभो में से एक हैं। अपने समकालीन कवियों से इतर उन्होंने कविता में कल्पना कम और यथार्थ को प्रमुखता से चित्रित किया है। वे हिन्दी में मुक्तछंद के प्रवर्तक भी हैं। हिन्दी साहित्य के सर्वाधिक चर्चित साहित्यकारों में से एक निराला का जन्म बंगाल की रियासत महिषादल (जिला मेदिनीपुर) में माघ शुक्ल एकादशी संवत 1955 तदनुसार 21 फरवरी सन 1899 में हुआ था। उनकी कहानी संग्रह लिली में उनकी जन्मतिथि 21 फरवरी 1899 अंकित की गई है। वसंत पंचमी पर उनका जन्मदिन मनाने की परंपरा 1930 में प्रारंभ हुई। उनका जन्म रविवार को हुआ था, इसलिए सुर्जकुमार कहलाए। उनके पिता पंडित राम सहाय तिवारी उन्नाव (बैसवाड़ा) के रहने वाले थे और महिषादल में सिपाही की नौकरी करते थे। वे मूल रूप से उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले का गढ़कोला नामक गांव के निवासी थे।
निराला की शिक्षा हाई स्कूल तक हुई। बाद में हिन्दी संस्कृत और बांग्ला का स्वतंत्र अध्ययन किया। पिता की छोटी-सी नौकरी की असुविधाओं और मान-अपमान का परिचय निराला को आरंभ में ही प्राप्त हुआ। उन्होंने दलित-शोषित किसान के साथ हमदर्दी का संस्कार अपने अबोध मन से ही अर्जित किया। तीन वर्ष की आयु में माता का और बीस वर्ष का होते-होते पिता का देहांत हो गया। अपने बच्चों के अलावा संयुक्त परिवार का भी बोझ निराला पर पड़ा। प्रथम विश्वयुद्ध के बाद फैली महामारी में न सिर्फपत्नी मनोहरा देवी, बल्कि चाचा, भाई और भाभी का भी देहांत हो गया। शेष कुनबे का बोझ उठाने में महिषादल की नौकरी अपर्याप्त थी। इसके बाद का उनका सारा जीवन अनर्थपूर्ण आर्थिक संघर्ष में बीता। निराला के जीवन की सबसे विशेष बात यह है कि कठिन-से-कठिन परिस्थितियों में भी उन्होंने सिद्धांत त्यागकर समझौते का रास्ता नहीं अपनाया, संघर्ष का साहस नहीं गंवाया। जीवन का उत्तरार्द्ध इलाहाबाद में बीता। वहीं दारागंज मोहल्ले में स्थित रायसाहब की विशाल कोठी के ठीक पीछे बने एक कमरे में 15 अक्तूबर 1961 को उन्होंने अपनी इहलीला समाप्त की।
बता दें कि ‘निराला’ की पहली नियुक्ति महिषादल राज्य में ही हुई। उन्होंने 1918 से 1922 तक यह नौकरी की। उसके बाद संपादन, स्वतंत्र लेखन और अनुवाद कार्य की ओर प्रवृत्त हुए। 1922 से 1923 के दौरान कोलकाता से प्रकाशित समन्वय का संपादन किया। 1923 के अगस्त से मतवाला के संपादक मंडल में कार्य किया। इसके बाद लखनऊ में गंगा पुस्तक माला कार्यालय में उनकी नियुक्ति हुई, जहां वे संस्था की मासिक पत्रिका सुधा से 1935 के मध्य तक संबद्ध रहे। 1935 से 1940 तक का कुछ समय उन्होंने लखनऊ में भी बिताया। इसके बाद 1942 से मृत्यु पर्यन्त इलाहाबाद में रह कर स्वतंत्र लेखन और अनुवाद कार्य किया। उनकी पहली कविता जन्मभूमि प्रभा नामक मासिक पत्र में जून 1920 में, पहला कविता संग्रह 1923 में अनामिका नाम से, तथा पहला निबंध बंग भाषा का ‘उच्चारण’ अक्तूबर 1920 में मासिक  पत्रिका सरस्वती में प्रकाशित हुआ। वे जयशंकर प्रसाद, सुमित्रानंदन पंत और महादेवी वर्मा के साथ हिन्दी साहित्य में छायावाद के प्रमुख स्तंभ माने जाते हैं। उन्होंने कहानियां उपन्यास और निबंध भी लिखे हैं, किन्तु उनकी ख्याति विशेषरूप से कविता के कारण ही है।
‘निराला’ की काव्यकला की सबसे बड़ी विशेषता है चित्रण-कौशल। आंतरिक भाव हो या बाह्य जगत, उनके दृश्य-रूप, संगीतात्मक ध्वनियां हो या रंग और गंध, सजीव चरित्र हों या प्राकृतिक दृश्य, सभी अलग-अलग लगने वाले तत्वों को घुला-मिलाकर निराला ऐसा जीवंत चित्र उपस्थित करते हैं कि पढ़ने वाला उन चित्रों के माध्यम से ही निराला के मर्म तक पहुंच सकता है। निराला के चित्रों में उनका भावबोध ही नहीं, उनका चिंतन भी समाहित रहता है। इसलिए उनकी बहुत-सी कविताओं में दार्शनिक गहराई उत्पन्न हो जाती है। इस नए चित्रण-कौशल और दार्शनिक गहराई के कारण अक्सर निराला की कविताएं कुछ जटिल हो जाती हैं, जिसे न समझने के नाते विचारक उन पर दुरूहता आदि का आरोप लगाते हैं। उनके किसान-बोध ने ही उन्हें छायावाद की भूमि से आगे बढ़कर यथार्थवाद की नई भूमि निर्मित करने की प्रेरणा दी। विशेष स्थितियों, चरित्रों और दृश्यों को देखते हुए उनके मर्म को पहचानना और उन विशिष्ट वस्तुओं को ही चित्रण का विषय बनाना, निराला के यथार्थवाद की एक उल्लेखनीय विशेषता है। निराला पर आध्यात्मवाद और रहस्यवाद जैसी जीवन-विमुख प्रवृत्तियों का भी असर है। इस असर के चलते वे बहुत बार चमत्कारों से विजय प्राप्त करने और संघर्षों का अंत करने का सपना देखते हैं। निराला की शक्ति यह है कि वे चमत्कार के भरोसे अकर्मण्य नहीं बैठ जाते और संघर्ष की वास्तविक चुनौती से आंखें नहीं चुराते। कहीं-कहीं रहस्यवाद के फेर में निराला वास्तविक जीवन-अनुभवों के विपरीत चलते हैं। हर ओर प्रकाश फैला है, जीवन आलोकमय महासागर में डूब गया है आदि ऐसी ही बातें हैं। यह रहस्यवाद निराला के भावबोध में स्थायी नहीं रहता, वह क्षणभगुर ही साबित होता है। अनेक बार निराला शब्दों, ध्वनियों आदि को लेकर खिलवाड़ करते हैं। इन खिलवाड़ों को कला की संज्ञा देना कठिन काम है। लेकिन सामान्यत: वे इन खिलवाड़ों के माध्यम से बड़े चमत्कारपूर्ण कलात्मक प्रयोग करते हैं। इन प्रयोगों की विशेषता यह है कि वे विषय या भाव को अधिक प्रभावशाली रूप में व्यक्त करने में सहायक होते हैं। निराला के प्रयोगों में एक विशेष प्रकार के साहस और सजगता के दर्शन होते हैं। यह साहस और सजगता ही निराला को अपने युग के कवियों में अलग और विशिष्ट बनाती है।

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