बुधवार, 21 सितंबर 2011

मुठभेड़ों का ‘सच’



विश्वत सेन
भे  
देश की सेना और पुलिस को सरकार से वाहवाही या फिर पेचीदे मामलों को सुलझाने की दरकार होती है, तो वह फर्जी मुठभे ड़ कर बेगुनाहों को मौत की घाट उतारने में देर नहीं करती। सेना ने अभी छह अगस्त को कश्मीर में विक्षिप्त व्यक्ति को मारकर पाक प्रशिक्षित आतंकी को मुठभेड़ में मारने का दावा किया था। बाद में पता चला कि वह मुठभेड़ पूरी तरह फर्जी था। सेना के जवानों ने स्वाधीनता दिवस के पहले सरकार की वाहवाही लूटने के लिए जम्मू से किसी विक्षिप्त को पकड़कर पूंछ जिले में मार गिराने की कारगुजारी की। जम्मू-कश्मीर में यह कोई इकलौता मुठभेड़ नहीं था। इसके पहले भी सेना और पुलिस के जवानों की ओर से कई फर्जी मुठभेड़ में तथाकथित आतंकियों के मार गिराने का मामला प्रकाश में आया है। यह सच है कि आतंकवाद, नक्सलवाद और अपराधों के साए में पल रहे इस प्रजातांत्रिक देश की सेना और पुलिस सच का संधान करने के बजाए फर्जी मुठ•ोड़ कर मामले को सुलझाने का दुस्साहस करने में गुरेज नहीं करती। इसी का नतीजा है कि आज जम्मू-कश्मीर के कब्रों में दो हजार से भी अधिक बेनामी और लावारिश लोगों की लाश दफन है।
देश में अकेले जम्मू-कश्मीर ही ऐसा राज्य नहीं है, जहां वाहवाही और सम्मान लुटने के लिए फर्जी मुठभेड़ किए जा रहे हों, बल्कि तमाम राज्यों में पुलिस इस प्रकार के मुठभेड़ों को अंजाम दे रही है। सेना और पुलिस के इस कारनामे पर उंगलियां उठती रही हैं और अभी हाल ही में मानवाधिकार आयोग ने भी उठाए हैं। हालिया जारी रिपोर्ट में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने कहा है कि घाटी में 38 स्थानों पर 2156 लोग सामूहिक कÞब्रों में दफन हैं। बीते दो दशक के दौरान यह पहली बार है, जब मानवाधिकार संस्था ने घाटी में सामूहिक कब्रों में बेनामी और लावारिस लाशों की मौजूदगी को स्वीकार किया है। रिपोर्ट में यह कहा गया है कि तस्लीम कश्मीर की उन सैकड़ों औरतों में हैं, जिनके पति और बेटे लापता हो गए हैं। पिछले छह साल से इंसाफ की जंग लड़ रही है। 27 साल की तस्लीम का कहना है अब उसे इंसाफ मिल जाएगा। साल 2007 में तस्लीम के शौहर नजीर अहमद की लाश जिला गांदरबल की एक गुमनाम कब्र से बरामद हुई थी। सेना और स्थानीय पुलिस पर आरोप है कि दक्षिणी कश्मीर के जिले कोकरनाग के रहने वाले नजीर अहमद को पुलिस के कथित तौर पर स्पेशल आपरेशन ग्रुप ने फरवरी 2006 को श्रीनगर से अगवा कराया था और गांदरबल में उसे एक फर्जी मुठभेड़ में मारकर पाकिस्तान चरमपंथी के तौर पर गांदरबल में दफन कर दिया गया।
सेना और पुलिस के इस कारनामे के बीच एक बड़ा सवाल यह खड़ा होता है कि सामूहिक कब्रों में दफन 2156 लाशों की शिनाख्त कैसे की जाए? मानवधिकार आयोग के प्रमुख सेवानिवृत्त न्यायाधीश बशीर अहमद का कहना है कि अभी यह रिपोर्ट सरकार के सामने पेश नहीं की गई है, लेकिन इन मामलों में सरकार ही जवाबदेह है। उनका कहना है कि काफी जांच-पड़ताल के बाद वे इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि कहीं न कहीं सरकार की प्रशासनिक क्षमता की कमी की वजह से बेगुनाहों का कत्ल किया जा रहा है। उन्होंने कहा है कि सेना ने आतंकवादियों के नाम पर जिन बेगुनाहों को हलाक किया है, उनके परिजनों को इंसाफ मिलना ही चाहिए।
बता दें कि वर्ष 2008 में मानवाधिकार के लिए काम करने वाले संगठनों ने एक रिपोर्ट में अकेले उत्तरी कश्मीर में दर्जनों सामूहिक कब्रों में 2800 बेनामी लोगों की लाश दफन होने का दावा किया था। नजीर अहमद का मामला प्रकाश में आने के बाद आनन-फानन में सरकार ने चार अफसरों और कई जवानों को गिरफ्तार किया था।

जम्मू-कश्मीर में फर्जी मुठभेड़
छह अगस्त मानसिक विक्षिप्त को लश्कर-ए-तैयबा का डिविजनल कमांडर अबु उसमान बताकर फर्जी मुठभेड़ में हलाक करा दिया गया। इस फर्जीवाड़े का श्रेय लेने के लिए सेना ने भी ऐलान कर दिया कि जिला पुंछ के सुरनकोट में 12 घंटे तक चली मुठभेड़ में एक पाकिस्तानी आतंकवादी अबु उसमान को ढेर कर दिया गया है। विशेष पुलिस अधिकारी (एसपीओ) नूर हुसैन सेना में स्थायी नौकरी चाहता था और थल सेना के एक जवान अब्दुल माजिद को नकद इनाम हासिल करने की इच्छा थी। फलस्वरूप दोनों ने एक साजिश रची और चार अगस्त को राजौरी की गुज्जर मंडी से एक मानसिक रूप से विक्षिप्त व्यक्ति को उठाया और उसे सुरनकोट ले गए। इसके बाद दोनों ने सेना को मुखबरी की कि जिला पुंछ के मरहोटा क्षेत्र में सीमा पार से आए आतंकवादियों को देखा गया है। सेना ने उस क्षेत्र को घेर लिया और उस निर्दोष की हत्या करने के बाद ऐलान कर दिया गया।
सोहराबुद्दीन फर्जी एनकाउंटर
22 नवंबर 2005 को हैदराबाद से महाराष्ट्र के सांगली जा रहे सोहराबुद्दीन और उसकी पत्नी कौसरबी को कथित तौर गुजरात पुलिस ने उठा लिया था। इसके बाद 26 नवंबर 2005 को गुजरात पुलिस ने एक फर्जी मुठभेड़ में सोहराबुद्दीन की कथित तौर पर हत्या कर दी थी। कुछ दिनों बाद कौसरबी रहस्यमय परिस्थितियों में मृत पाई गई थी। इस संदिग्ध मुठभेड़ में गोधरा दंगों की गूंज के चलते बार-बार गुजरात के मुख्यमंत्री बनने वाले नरेंद्र मोदी का नाम जुड़ा हुआ है। हालांकि इसका मामला हाईकोर्ट से होते हुए अभी सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है और गुजरात के कई पूर्व मंत्रियों को इसकी सजा भी मिल चुकी है। मामले की जांच सीबीआई कर रही है।
इशरतजहां  फर्जी मुठभेड़
2004 इशरतजहां और तीन दूसरे लोगों का मुठभेड़ फर्जी था। आतंकवादी बताकर इन लोगों को मुठभेड़ में मार दिया गया। इन्हें जिस तरह से मारा गया था, वह पूरी तरह से फर्जी था। गुजरात पुलिस ने इशरतजहां और तीन अन्य को चरमपंथी संगठन लश्कर का सदस्य बताया गया था। इस मामले की जांच भी सीबीआई कर रही है और सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में हो रही है।
दारा सिंह एनकाउंटर
राजस्थान के मानसरोवर थाना क्षेत्र में 23 जून 06 को दारासिंह उर्फ दारिया को एसओजी ने मुठभेड़ में मार गिराया था। उसकी पत्नी सुशीला ने एसओजी पर एक भाजपा नेता और पूर्व मंत्री के दबाव में पति की फर्जी मुठभेड़ में हत्या करने का आरोप लगाया था। पुलिस ने इस मामले में मुठभेड़ को सही मानते हुए एफआर (अंतिम रिपोर्ट) पेश कर दी थी। मामला हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया था। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर सीबीआई ने इस मामले की जांच शुरू की थी। दारा सिंह के परिवार पर बयान बदलने के लिए दबाव डाला जा रहा है। यहां तक कि जान से मारने की धमकी भी दी गई है। दारा के परिवार ने इसकी शिकायत सीबीआई के निदेशक से की है और सुरक्षा की गुहार लगाई है।
मुरैना फर्जी मुठभेड़
22 नवंबर 2010 को टेंटरा थाना क्षेत्र के जाटौली गांव के बीहड़ों में मुठभेड़ में मुरैना पुलिस ने उत्तर प्रदेश के मैनपुरी निवासी चार डकैतों को मारने का दावा किया था। उसका कहना था कि संजू सिंह, गुड्डू सिंह, सोनू व अनिल काछी डकैत हैं। उसने मुठभेड़ स्थल से तीन राइफल, पिस्तौल और कारतूस मिलने का भी दावा किया गया था। मुठभेड़ की न्यायिक जांच कर रहे सबलगढ़ के तत्कालीन एसडीएम विकास नरवाल ने मुठभेड़ पर अहम सवाल उठाए थे।
दतिया फर्जी मुठभेड़
22 अप्रैल 2005 को दतिया पुलिस ने डबरा निवासी खुशालीराम, उसके भाई बालकिशन और कल्ली के साथ घर से उठा लिया। कुछ दिन के बाद बालकिशन और कल्ली को तो छोड़ दिया गया, लेकिन खुशालीराम पुलिस गिरफ्त में ही रहा। 5 फरवरी, 2007 को दतिया पुलिस ने खुशालीराम को डकैत कालिया उर्फ बृजकिशोर बताते हुए मुठभेड़ में मारने का दावा किया। बाद में 29 अप्रैल, 2009 को झांसी पुलिस ने डकैत कालिया को एक मुठभेड़ में जिंदा पकड़ लिया।


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